
अभी हाल ही में एक बुजुर्ग के श्राद्ध एवं शुद्धि हवन में सम्मिलित होने का अवसर मिला, जिसे गायत्री परिवार के एक विद्वान ने सम्पन्न करवाया। इसी में उन्होंने तर्पण के समय किए जाने वाले पिंड दान यानि कि पंचबलि की व्याख्या की।
उन्होंने समझाया कि कर्म कांड में जब भी हिंदू व्यक्ति की मृत्यु पश्चात तर्पण और श्राद्ध होता है तब उसमें 5 पिंड बनाए और दान किए जाते हैं, जिन्हें पंचबलि कहा जाता है। चूँकि यहाँ बलि शब्द का प्रयोग होता है अतः अज्ञानतावश लोग इनको हनन (हत्या) से जोड़ कर देखते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि किसी भी भाषा में शब्दों के एक से अधिक अर्थ आम बात हैं। संस्कृत में भी ऐसा ही है। बलि शब्द का एक अर्थ हनन करना अवश्य है किंतु इसका एक अर्थ और भी है, दान/समर्पण/त्याग।
महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘रघुवंशम्’ में इस शब्द का प्रयोग ‘कर’ के लिए भी किया है, जिसे उन्होंने प्रजा द्वारा प्रशासन को किए गए दान के रूप में बताया है। श्लोक इस तरह है –
‘प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिम् अग्रहीत्।
सहस्रगुणमुत्स्रष्टुम् आदत्ते हि रसं रविः।।’
अर्थात् प्रजा के भूत (क्षेम/वैभव) के लिये ही वह (राजा दिलीप) उन से बलि (कर) लेता था, जैसे कि सूर्य जल लेता है उसको सहस्रगुणा करके बरसाने के लिए।
इसी प्रकार पंचबलि का महत्व इस प्रकार देखना उचित है –
- गौ बलि (भाग) – गौ (गाय )पवित्रता की प्रतीक है। इसलिए पहला भोग गौ को जाता है, यानि कि हम अपने पूर्वजों का आशीर्वाद चाहते हैं कि हम अपने अंदर की अपवित्रता का उन्मूलन कर सकें।
- कुक्कुर बलि (भाग) – कुक्कुर (श्वान) भक्ति और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है। इस बलि का अर्थ है कि हम अपने पूर्वजों से अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बने रहने का आशीर्वाद चाहते हैं।
- काक बलि (भाग) – काक (कौआ) मलिनता निवारण का प्रतीक है, अर्थात हम अपने अंदर की मलिनता दूर कर सकें।
- देव बलि (भाग) – देवता देवत्व संवर्धक शक्तियों के स्वामी हैं। जिसका अर्थ है कि हम देवतुल्य ज्ञान और शक्ति को ग्रहण कर सकें।
- पिपीलिकादी बलि (भाग) – पिपीलिका (चींटी) श्रमनिष्ठा और सामूहिकता का प्रतीक है, इसका अर्थ है कि हमें सदैव श्रमनिष्ठ रहने और परिवार एवं समाज में सामूहिक रहने का आशीर्वाद मिले।
इस प्रकार शब्दों का सही अर्थ न पता होने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है। हर एक सनातन कृत्य का आधार है और तर्क भी। इसी प्रकार से अपेक्षा में दिए दान को भी कई बार गलत अर्थ में निरूपित किया जाता है, जबकि इसका साधारण अर्थ होता है कि दान के रूप में हम अपना अहं या ऐश्वर्य का एक भाग पृथक करते हैं जिससे हमें आशीर्वाद ग्रहण करने में आसानी होती है। अहं से युक्त व्यक्ति कुछ भी ग्रहण कहाँ कर सकता है!
इसी प्रकार हमारे द्वारा गौ, कुक्कुर, काग, मत्स्य और पिपीलिका को अन्नदान भी एक अर्थ में ही है। इसके द्वारा हम ईश्वर निर्मित समस्त जीवों के साथ अपना भोजन साझा कर सहचर की भावना का विस्तार करते हैं। गौ (घरेलू जानवर), श्वान बाहरी जानवर, काग नभचर, मत्स्य जलचर और पिपीलिका जमीन के भीतर रहने वाले जीव का प्रतीक हैं। यही सनातन धर्म की महानता है।