साभार लेखिका: रेणु अग्रवाल

हिंदी भाषा एक तार्किक और वैज्ञानिक भाषा है। इसमें जो लिखा जाता है और उसके उच्चारण में कंठ से जो ध्वनि निकलती है, वह समान होती है। इसी करण हिन्दी में बारह खड़ी की मात्राओं का प्रयोग होता है। एक मात्रा या अक्षर के बदलने से ही वाक्य का अर्थ बदल सकता है। आजकल अंग्रेज़ी का प्रयोग अधिक होने के कारण हिंदी के अक्षरों और मात्राओं में ग़लतियाँ दिखना आम होता जा रहा है। संक्षिप्त संदेशों (SMS या post) के प्रसार से भी अशुद्धियों में वृद्धि हुई है। यहाँ ऐसी ही एक सामान्य मात्रा में अनुनासिक (ँ) और अनुस्वार (ं) यानि चंद्रबिंदु और केवल बिंदु कहाँ-कहाँ प्रयोग होगा, इसके प्रति लोग बेपरवाह होते जा रहे हैं और दोनों को एक ही अर्थ में मान लेते हैं।
व्याकरण की दृष्टि से ना समझाते हुए बहुत आम भाषा में कहूँ कि जिन शब्दों के बीच में हम ‘न्’ (आधा न्) लगा सकते हैं उनमें अनुस्वार यानि केवल बिंदु लगेगा। जैसे हंस के उच्चारण में हम हन्स की ध्वनि निकालते हैं, जिसका अर्थ होता है एक पक्षी (Swan)। अब यदि इस बिन्दु यानि अनुस्वार के स्थान पर हम चन्द्रबिन्दु यानि अनुनासिक लगा देंगे तो शब्द हो जाएगा हँस (Laugh)। जिसके उच्चारण में बीच में केवल हल्की ध्वनि होती है जो कि स्पष्ट ‘न्’ की नहीं होती।
आपको ध्यान होगा फिल्म ‘3 Idiots’ का वह सीन, जिसमें चतुर महालिंगम की हिन्दी के उच्चारण में ‘हँ’ और ‘हन्’ की ध्वनि हास्य पैदा करती है।
ऐसे ही जिन शब्दों के बीच हम ‘न्’ नहीं लगा सकते उन पर चंद्रबिंदु यानि अनुनासिक लगेगा और बाक़ी पर अनुस्वार !
कुछ शब्द, जिनमें अनुनासिक का प्रयोग होगा – आँगन, अँधेरा, साँप, कारवाँ, गाँव इत्यादि। इनमें हम ‘न्’ नहीं लगा सकते हैं, इसलिए चंद्रबिंदु ही आएगा।
इसी प्रकार कुछ शब्द जैसे रंग, पंकज, कंठ, गंगा, पंजा, ठंडा, पंडा, कंधा, बंद, संत, चंचल, मंगल, बंदा इत्यादि ऐसे शब्द हैं जिनमें ‘न्’ लगाया जा सकता है, इसलिए अनुस्वार मतलब केवल बिंदु आएगा।
इसी प्रकार शब्द की सही ध्वनि पहचान कर आप आसानी से समझ सकते हैं कि कहाँ पर बिन्दु आएगा और कहाँ पर चन्द्रबिन्दु …क्यों हो गया ना सरल !!
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